अर्थ
जो जीवंत हो उठे
मेरे सामने
अगर
ये शब्दों की देह से होकर
न आते
तोह कैसे आते
मैं हंसता हूँ, प्यार करता हूँ
रोता हूँ, लड़ता हूँ
चुप हो जाता हूँ
परे नहीं हूँ सबसे
पर मैंने जीना सीखा है
जीवन जीने की कोई कला नहीं।
जो जीवंत हो उठे
मेरे सामने
अगर
ये शब्दों की देह से होकर
न आते
तोह कैसे आते
मैं हंसता हूँ, प्यार करता हूँ
रोता हूँ, लड़ता हूँ
चुप हो जाता हूँ
परे नहीं हूँ सबसे
पर मैंने जीना सीखा है
जीवन जीने की कोई कला नहीं।
Umadh, Jiwan kitna kuch apne aap shekha dete hai.
ReplyDeleteJeene tak jeevan na simte tabhi acha hai.
DeleteDhanyawad !
जीवन जीने की कोई कला नहीं..
ReplyDeletewonderful thought...
behad khoobsoorat kavita ki rachna ki hai apne...
keep writing..
Thank you Deepak.
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